हरियाणा में सरसों की फसल अब कटने लगी है और कई कई गांवों में तो 30% से ज्यादा कट भी चुकी है। अब क्योंकि इसबार गाँव में काम करने वाले छोटे व्यापारियों ने अच्छा भाव देने से मना कर दिया है तो किसान अपनी सरसों को सरकारी मूल्य यानी 5450 के दाम पर बेचने के लिए मंडियों की तरफ रुख कर रहे हैं।
अधिकतर जिलों में सरसों की मंडियों में पहुंच भी शुरू हो गई है, लेकिन सरकारी खरीद शुरू नहीं होने से किसान मंडियों में औने-पौने दामों पर सरसों बेचने को विवश हैं। सरकार द्वारा सरसों की सरकारी खरीद में देरी से किसानों के चेहरे मुरझा गए हैं।
अनुमान है कि करीब 30 से 50 प्रतिशत सरसों की फसल मंडियों में पहुंच चुकी है, लेकिन सरकारी खरीद शुरू नहीं होने के कारण निजी एजेंसियां किसानों से कम कीमत पर सरसों खरीद रही हैं। किसानों का कहना है कि निजी एजेंसियां और कमीशन एजेंट आपस में मिलीभगत कर एमएसपी से कम कीमत पर उनकी फसल खरीदते हैं। इससे उसे 700 फीसदी तक का नुकसान उठाना पड़ता है।
एक तरफ सरकार का बयान है की सरसों की सरकारी खरीद 15 मार्च से शुरू हो जाएगी और न्यूनतम समर्थन मूल्य 5450 रुपये पर फसल की खरीद की जाएगी। लेकिन किसानों को इस सरकारी आश्वासन पर भरोसा नहीं है और किसान इस समय सरसों को 4800 से 5000 रुपये प्रति क्विंटल बेचने को विवश हैं।
सरकारी एजेंसियां सरसों को बिल्कुल सुखाने के बाद ही खरीदती हैं
किसानों का कहना है कि वे घर से सरसों सुखाकर लाते हैं, लेकिन फिर भी एजेंसियां फसल के बाजार में पहुंचने पर फसल को और सुखाने को बोलती हैं और इससे किसानों को कई कई दिन मंडियों में पड़े रहना पड़ता है। एजंसियों की देखा देखी आढ़ती भी अधिक नमी का बहाना बनाकर किसानों से कम कीमत पर सरसों खरीदते हैं।
किसानों ने कहा कि अगर सरकार ने थोड़ी देर पहले सरकारी खरीद शुरू कर दी होती तो किसानों को इस लूट से बचाया जा सकता था। वहीं दूसरी ओर सरसों की प्रति एकड़ औसत उपज 6-8 क्विंटल ही होती है और रेट भी कम होते हैं इसलिए किसानों की लागत भी नहीं आ पाती है।