Delhi MCD Polls 2022: सांसद गौतम गंभीर के क्षेत्र से डॉक्टर हर्षवर्धन सुझाने लगे उम्मीदवार तो बीजेपी की बैठक में हो गया ये खेला

Delhi MCD Polls 2022: राजधानी दिल्ली में होने वाले एमडीसी चुनाव की वोटिंग 4 दिसंबर को होगी और 7 दिसंबर 2022 को नतीजे आएंगे. एमसीडी चुनाव के लिए बीजेपी ने अपनी पहली लिस्ट जारी कर दी है.
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मंजूरी मिलने के बाद शनिवार (12 नवंबर) को लिस्ट जारी की गई. फिलहाल 232 कैंडिडेट्स के नाम सामने आए हैं. 18 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम सामने आने बाकी हैं. वहीं, टिकट बंटवारे पर पार्टी की एक मीटिंग के दौरान माहौल गर्म हो गया.
टिकट बंटवारे के मुद्दे पर एक बैठक के दौरान 22 सदस्यीय राज्य चुनाव समिति के सदस्यों के बीच तीखी बहस के बाद भाजपा की सेंट्रल यूनिट ने एमसीडी चुनावों के लिए टिकट वितरण अपने हाथ में ले लिया है.
गौरतलब है कि दिल्ली इकाई के अध्यक्ष आदेश गुप्ता की अध्यक्षता वाले पैनल में केंद्रीय मंत्री और दिल्ली की सांसद मीनाक्षी लेखी, दिल्ली के अन्य छह सांसद, रामवीर बिधूड़ी, विजय गोयल, पवन शर्मा, सतीश उपाध्याय और अन्य शामिल हैं.
सूत्रों के मुताबिक, गौतम गंभीर सांसद हर्षवर्धन द्वारा अपने निर्वाचन क्षेत्र पूर्वी दिल्ली में उम्मीदवारों के नाम सुझाने से नाखुश थे. पार्टी के एक नेता ने कहा कि हंस राज हंस, जो दिल्ली में ज्यादा सक्रिय नहीं हैं, वो भी असंतुष्ट थे क्योंकि वह कुछ नेताओं के लिए टिकट चाहते थे.
सांसदों के बीच बहस: सूत्रों के मुताबिक, गुरुवार रात दिल्ली में वेस्टर्न कोर्ट में हुई बैठक में सांसदों के बीच बहस हुई. कई सांसद टिकट वितरण को लेकर राज्य इकाई के नेताओं से असहमत थे.
सूत्रों ने कहा कि पूर्वी दिल्ली के सांसद गौतम गंभीर पार्टी नेता विजय गोयल और राज्य महासचिव कुलजीत चहल के नाम से असहमत थे. वहीं, पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा आशीष सूद और पवन शर्मा के नाम के साथ असहमत थे. सांसद मीनाक्षी लेखी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय से असहमत थीं और सांसद रमेश बिधूड़ी नेता प्रतिपक्ष रामवीर बिधूड़ी के नाम से असहमत थे.

टिकट वितरण के बीच बढ़ा तनाव: सांसदों का कहना है कि वो जानते हैं कि स्थानीय स्तर पर कौन काम कर रहा है, जिन्होंने इतने सालों तक काम किया है जबकि राज्य इकाई के नेता पार्टी के दूसरे कार्यकर्ताओं को टिकट दे रहे थे.
जिसकी वजह से ऐसी स्थिति पैदा हुई और तनाव बढ़ गया. जिसके बाद नेता आम सहमति तक पहुंचने में विफल रहे और केंद्रीय नेतृत्व ने चीजों को अपने हाथ में ले लिया.